सोमवार, 16 अगस्त 2010

भारतीय दर्शन शास्त्री

विकिपीडिया से साभार -डॉ.लाल रत्नाकर

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन

(सर्वपल्ली राधाकृष्णन से अनुप्रेषित)
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन

कार्यकाल
१३ मई, १९६२१३ मई, १९६७
प्रधान मंत्रीगुलजारी लाल नंदा (प्रथम कार्यावधि)
लाल बहादुर शास्त्री
गुलजारीलाल नंदा (द्वितीय कार्यावधि)
उपराष्ट्रपतिडाक्टर ज़ाकिर हुसैन
पूर्व अधिकारीराजेंद्र प्रसाद
उत्तराधिकारीडाक्टर ज़ाकिर हुसैन

कार्यकाल
१३ मई, १९५२१२ मई, १९६२
राष्ट्रपतिराजेन्द्र प्रसाद
पूर्व अधिकारीकार्यालय आरंभ
उत्तराधिकारीडाक्टर ज़ाकिर हुसैन

जन्म5 सितंबर 1888
तिरुट्टनी, तमिल नाडु, भारत
मृत्युअप्रैल 17 1975 (86वर्ष )
चेन्नई,तमिल नाडु, भारत
राजनैतिक पार्टीस्वतंत्र
जीवन संगीशिवकामु
संतान५ पुत्रियां + १ पुत्र
व्यवसायराजनीतिज्ञ, दार्शनिक, प्रख्याता
धर्महिन्दू

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन (५ सितम्बर १८८८ – १७ अप्रैल १९७५) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (१९५२ - १९६२) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। उनका जन्म दक्षिण भारत केतिरुत्तनि स्थान मे हुआ था जो चेन्नई से ६४ किमी उत्तर-पूर्व मे है। उनका जन्मदिन (५ सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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जीवन वृत्त

डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय सामाजिक संस्कृति से ओत प्रोत एक महान शिक्षाविद महान दार्शनिक महान वक्ता और एक अस्थावान हिंदू विचारक थे. स्वतंत्र भारत देश के दूसरे राष्ट्रपति थे. डाक्टर राधाकृष्णन ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण ४० वर्ष शिक्षक के रूप मे व्ययतीत किए. उनमे एक आदर्श्न शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे .उन्होने अपना जन्म दिन शिक्षक दिवस के रूप मे मनाने की ईक्क्षा व्यक्त की थी और सारे देश मे डाक्टर राधाकृष्णन का जन्म दिन 5 सितंबर को मनाया जाता है.

डाक्टर राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे. उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव दिमाग़ का सद उपयोग किया जाना संभव है.इसीलिए समस्त विश्व को एक इकाई समझकर ही शिक्षा का प्रबंधन किया जाना चाहिए. एक बार ब्रटेनके एडिनबरा विश्वविधायालय मे भाषण देते हुए डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि मानव को एक होना चाहिए .मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाती कि मुक्ति है.जब देशो कि नीतियो का आधार विश्व शांति कि स्थापना का प्रयत्न करना हो. डॉ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनंददायी अभिव्यक्ति और हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती प्रतिवर्ष 5 सितंबर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाई जाती है। इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का ह्रास होता जा रहा है और गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है, उनका पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। सन्‌ 1962 में जब वे राष्ट्रपति बने थे, तब कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गए थे। उन्होंने उनसे निवेदन किया था कि वे उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चय ही मैं अपने को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।' तब से 5 सितंबर सारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन ने जो अमूल्य योगदान दिया वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। वे बमुखी प्रतिभा के धनी थे। यद्यपि वे एक जाने-माने विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनयिक, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री थे, तथापि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में अनेक उच्च पदों पर कामकरते हुए भी शिक्षा के क्षेत्र में सतत योगदान करते रहे। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है।

डॉ. राधाकृष्णन कहा करते थे कि मात्र जानकारियाँ देना शिक्षा नहीं है। यद्यपि जानकारी का अपना महत्व है और आधुनिक युग में तकनीक की जानकारी महत्वपूर्ण भी है तथापि व्यक्ति के बौद्धिक झुकाव और उसकी लोकतांत्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है। ये बातें व्यक्ति को एक उत्तरदायी नागरिक बनाती हैं। शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति। वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है। करुणा, प्रेमऔर श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं।

वे कहते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने अनेक वर्षों तक अध्यापन किया। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। उनका कहना था कि शिक्षकउन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिए जो सबसे अधिक बुद्धिमान हों। शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए। सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है।



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GHAZIABAD, Uttar Pradesh, India
कला के उत्थान के लिए यह ब्लॉग समकालीन गतिविधियों के साथ,आज के दौर में जब समय की कमी को, इंटर नेट पर्याप्त तरीके से भाग्दौर से बचा देता है, यही सोच करके इस ब्लॉग पर काफी जानकारियाँ डाली जानी है जिससे कला विद्यार्थियों के साथ साथ कला प्रेमी और प्रशंसक इसका रसास्वादन कर सकें . - डॉ.लाल रत्नाकर Dr.Lal Ratnakar, Artist, Associate Professor /Head/ Department of Drg.& Ptg. MMH College Ghaziabad-201001 (CCS University Meerut) आज की भाग दौर की जिंदगी में कला कों जितने समय की आवश्यकता है संभवतः छात्र छात्राएं नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षा के साथ प्रयोग और विश्वविद्यालयों की निति भी इनके प्रयोगधर्मी बने रहने में बाधक होने में काफी महत्त्व निभा रहा है . अतः कला शिक्षा और उसके उन्नयन में इसका रोल कितना है इसका मूल्याङ्कन होने में गुरुजनों की सहभागिता भी कम महत्त्व नहीं रखती.