सोमवार, 10 सितंबर 2012

Classical Art


HISTORY OF EUROPEAN PAINTING

COURSE XIth. 

History of European Painting (Classical to Early Renaissance)

ObjectiveThe purpose of the study of European Art is to enable the students to see the wood 

rather than the trees
.
Unit I – Classical Art (15 Hrs.)

(a) Greek Art (b) Roman Art

Unit II- Medieval Period (15 Hrs.)

(a) Early Christian Art (b) Byzantine Art (c) Gothic Art

Unit III- Early Renaissance (15 Hrs,)

Early Renaissance in Florence -Giotto, Masaccio, Botticelli

Unit IV-Early Renaissance in Germany, Spain and Netherland. (15 Hrs.)

(a) Durer (b) El Greco (c) Van Eyck brothers.


http://www.amazon.com/Classical-Art-Greece-Oxford-History/dp/0192842374?&linkCode=waf&tag=collectiveartisan-20

http://www.collectiveartisan.com/art-history/roman-art/


यूरोप का क्लासिकल आर्ट (यूरोपीय शास्त्रीय कला)


सांस्कृतिक दुनिया के सर्वाधिक विकसित देशों में ग्रीक और रोम  का अपना हजारों वर्ष पुराना इतिहास है जो 

कला के विभिन्न स्वरूपों में आज भी हमारे सम्मुख मौजूद है, आर्किटेक्चर, स्कल्पचर और चित्रों के अवशेष 

जो रूप हमें प्रस्तुत करते हैं उससे तत्कालीन कला साम्राज्य की विशाल समझ और साहसपूर्ण रचना कर्मों से 

हमें रूबरू करते हैं -





































शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

वेनिस की कला उसके प्रमुख कलाकार

यासमीन
वेनिस की कला
रोम तथा फलोरेन्स के कलाकार जहा प्राचीन रोमन तथा इट्रस्कन कला से पे्ररित थे। वहां वेनिस के कलाकार पूर्व की बाइजेण्टाइन कला से प्रभावित थे । फ्लोरेन्स की कला पर मूर्तिकला का प्रभाव था । जबकि वेनिस की कला वहां के संगीतमय वातावरण की छाया में पल्लवित हुई इसके कारण ही वेनिस की कला में रंगों का प्राधान्य हो गया । फ्लोरेन्स की कला का विश्लेषण रेखाओं तथा आकृतियों के द्वारा किया जा सकता है। किन्तु वेनिस की कला की उत्तमता केवल रंगों के आधार पर ही निश्चित की जा सकती है। फ्लोरेन्स के कलाकार रेखाओं द्वारा चित्रांकन करके छाया प्रकाश द्वारा आकृतियों में उभार प्रदर्शित करते थे। वेनिस के कलाकार छाया प्रकाश की अपेक्षा रंगो के प्रभाव पर अधिक ध्यान देते थे । फ्लोरेन्स के कलाकार वस्तु की निश्चित आकृति मानते थे। किन्तु वेनिस के चित्रकारों ने वस्तुओं को रंगो के स्थल आकारों के रुप में ही देखा। वेनिस में धरातल के कोमल प्रभावों पर भी विशेष बल दिया गया है संयोजन का आधार रंग माने गये है। फ्लोरेन्स में वस्तु का एक ही रंग माना जाता था । किन्तु वेनिशिअन कलाकार वस्तु पर वातावरण तथा अन्य वस्तुओं का प्रभाव भी मानते थे । और इस प्रकार वस्तु का कोई मूल रंग नहीं माना जाता था । फ्लोरेन्स के रंगो में जहां स्थिरता है वहां वेनिस के रंगों में गीत है वेनिस की कला में रंगो के द्वारा प्रकाश की व्याख्या भी कीगयी है यदि किसी व्सतु पर अधिक प्रकाश पड़ रहा है तो उे केवल हल्के बल में ही अंकित न करके रंग को ही बदल दिया गया है। इस प्रकार एक ही धरातल की कई रंगते दिखाई गयी है चित्रो में प्रकाश की क्रीड़ा , प्रतिबिम्बित प्रकाश आदि। को ध्यान में रखकर ही रंग लगाये गये है रंग परस्पर घुलते-मिलते और सम्पूर्ण चित्र तल पर दौड़ते दिखाई देते है ।
उदाहरणार्थ:
नीले रंग की कोई आकृति नीली न रहकर बैगनी, हरी तथा नांरगी हो जाती है वह चित्र के वातावरण से प्रभावित होती और उसे प्रभावित भी करती है इससे वेनिस की चित्रकला की वर्ण-योजनाओं में द्रवणशीलता सिनपकपजल नामक गुण आ गया है टिशिअन आदि वेनिस के चित्रकारो ने रंगो को पतला करके लगाया है जिससे उनमें पादर्शिता भी आ गयी है तेल से पतले किये जाने के कारण इनमें चमक भी है फ्लोरेन्स के कलाकार वस्तु की सीमा को प्रकाश अधंकार-पूर्ण तलों द्वारा स्पष्ट अंकित करते थे ।
वेनिस के कलाकारों ने प्रकाश के अटूट स्त्रोत का प्रभाव ...
दिखाने की दृष्टि से वस्तुओं की सीमाओं को किंचित धुंधला बनाया,
इससे उनमें सीमाहीनता का प्रभाव आया। रंगो में निरन्तर परिवर्तन का प्रभाव कम्पंन के रुप में अनुभव होता है इस प्रकार फ्लोरेंस का कलाकार बुद्धिवारी और वेनिस का कलाकार ऐन्द्रिक सौन्दर्य का सर्जक था ।
वेनिस की कला इतिहासः-
वेनिस की कला का इतिहास अपने आप में सम्पूर्ण है फ्लोरेन्स के अतिरिक्त इटली में केवल यही एक नगर ऐसा था। जहां कला की परम्परा अविराम गीत में चली आ रही थी। अन्य स्थानों पर कोई संरक्षक अथवा राजा चित्रकारों को या तो कुछ समय के हेतु अपने यहां बुला लेते थे । या उसकी कृतियाॅं खरीद लेते थे पुनरुत्थान काल का वनेशियन दरबार अनेक प्रसिद्ध चित्रकारों को अपने यहा बुला लेते थे। या उनकी कृतियां खरीद लेते थे। वे यहां स्थायी रहकर एक विशिष्ट कला शैली का विकास करने लगे। यहां के सामाजिक वातावरण में भी एक प्रकार की उदारता एवं सहजता थी । व्यापार पर्याप्त उन्नत था । अतः वेनिस बहुत स्मृद्ध भी था । इससे एक तो कलाकार अपने चित्रों में वैभव सम्पन्न पात्रों का अंकन कर सकें । और दूसरे उन्हें अपने परिश्रम का पर्याप्त एवं आकर्षक पुरस्कार भी मिल जाता था । यही कि यहां पर कला और कलाकार खूब फूल फल रहे थे ।
वेनिस कला की प्रमुख विशेषताएॅंः-
वेनिस कला की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है:-
पुनरुत्थान काल की कला वेनिस में ही पूर्णता को पहुंची थी। वेनिस की कला में धार्मिक पृष्ठभूमि नहीं थी । केवल प्रकृति के गहन अध्ययन की भी रुचि थी । अनावृत स्कन्धों पर छाया प्रकाश की क्रीडा रुप की कोमल बाह्य सीमा, वस्त्रों में सुन्दर दिखाई देने वाली सिकुडने, वेशभूषा की तड़क-भड़क आकर्षक रंग योजना, अभिव्यक्ति पूर्ण मुखा कृति एवं मानवाकृति की शीलनता ये ही वेनिस के कलाकारों के लक्ष्य थे । विषय चाहे कुछ भी हो पर वे निरन्तर इन्हीं विशेषताऐं के अंकन के हेतु प्रयत्नशील रहे। और ये ही उनकी श्रेष्ठता का मापदण्ड थी । जो आॅखो को अच्छा लगता था उसी को उन्होंने प्राथमिकता प्रदान की । तकनीकी दृष्टि से इन कलाकारों की अभिव्यक्ति का प्रधान आधार रंग था । रंगो के द्वारा ही वेनिशियन कलाकारों ने सौन्दर्य के साथ साथ भयमिश्रित आनन्द भी व्यक्त किया । जो कार्य माइकेल एंजिलो की आकृतियों ने गठन शीलता द्वारा किया वही कार्य वेनिस के कलाकारों ने रंगो के द्वारा सम्पन्न किया ।
वेनिस कला के प्रमुख कलाकारः-
पुनरुत्थान के आरम के समय यहां गोथिक परम्पराओं का प्रचार था।
1450ई0 के लगभग तक यह प्रभाव प्रबल रहा । पदुआ नामक
नगर में ही यहाॅ सर्वप्रथम पुनरुत्थान की शुरुआत हुई। वेनिस तथा उसके निकटवती्र राज्य मिलन में अनेक स्थानीय कलाकार पहले से ही कार्य कर रहे थे ं जेण्टाइल दा फे्रब्रियानों  एवं पिसानेल्लो नामक फलोरेन्स के दो कलाकारो ने उत्तरी इटली की विस्तृत यात्राएं की और वहां अनेक कलाकृतियां की रचना भी की । 1440 के लगभग उत्तरी इटली में हमें फलोरेन्स के अनेक कलाकार दिखाई देते ही जैसेः- मेसोलिनोधिवती्र उच्चल्लों तथा फिलिप्पो लिप्पी । फिर भी वेनिस आदि की कला पर उनका उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड  सका । यहां तक की दोनातेल्लो भी वही इस वर्ष तक रहा । किन्तु वेनिस की कला में वह परिवर्तन नहीं ला सका । पादुआ का स्थानीय कलाकार आन्द्रिया मान्तेना ही सर्वप्रथम पुनरुत्थान का सूत्रपात करने में समर्थ हुआ ।
वेनिस की कला के प्रमुख कलाकार
वेनिस की कला के प्रमुख कलाकार निम्नलिखित है।
ज्योर्जिओनः-
जन्म 1476 मृत्यु - 1590
जियोवानी बेल्लिनी के शिष्यों में ज्योर्जिओन बहुंत प्रसिद्ध हुआ । उसका नाम लियोनार्दो दा बिन्ची के साथ आधुनिक कला के संस्थापक के रुप में लिया जाता है। उसका जन्म केसिलफ्रान्को में हुआ था । उसका आरम्भिक नाम ज्योर्जिओ था । किन्तु अपनी स्थिति और विचारो की सहजता के कारण लोग उसे ज्योर्जिओन कहने लगे थे ं कृषक परिवार में जन्म लेकर भी वह अत्यन्त सुसंस्कृत था वह लोगों को अच्छा लगता था । वंशी बजाने का उसे शोक था । इसने उसकी कला को भी प्रभावित किया ।
ज्योजिओन की कला का विषय:-
ज्योजिओन अपने चित्रों में सगीत सम्बन्धी विषयों का अंकन किया। या फिर उसके चित्र संगीत के समान मन स्थिति उत्पन्न करते है वह रेखा द्वारा तथात्मकता और रंगो द्वारा संगीत का चितेरा ही 1506 में कैटेना नामक कलाकार के साथ एक स्टुडियो की उसने नीव डाली । 1507-1508 में उसने डोज के राज भवन को चित्रित किया। 1508 में वह वेनिस स्थित जर्मन व्यापारियो के भवन में भिन्ति चित्र अंकित करने पहुंच गया । वह एक छोटी स्थिति मेकं तिश्अिन भी कार्य कर रहा था । यहीं के जो चित्र अवशिष्ट है उनसे सिद्ध होता है कि वह एक कल्पनाशील आविष्कता्र था । जिससे तिशिअन ने बहुत कुछ सीखा । संगीत विषयक उसके कुछ चित्र है संगीत सभा ज्ीम बवदबमतज मेडोलिन वादक, डंद चसंलपदह ं उंदकवसपदए संगीत पार्टी आदि । 1500 ई0 के कुछ पूर्व उसने अपनी जन्म भूमि में सन्त लिबेरल एवं सन्त फ्रांसिस के साथ मेकडोन्ना और शिशु का चित्र अंकित किया था ।जिसमें संयोजन की लय, आकृतियो की सुन्दरता और प्रियता कुमारी के नवयौवन की मिठास और सरलता, शिशु की स्वाभाविकता, सन्तों की वीरता पूर्ण भावना आदि का अत्यन्त आकर्षक चित्रण हुआ है।
ज्योर्जिओन के प्रमुख चित्र तथा प्रमुख व्यक्ति चित्रः-
ज्योजिओन ने अनेक प्रभावशाली व्यक्ति चित्रों का अंकन किया था। तथा सूली ले जाते हुआ ईसा का चित्र भी बनाया था । जिसका केवल शिर का चित्रित अंश ही शेष बचा है। ज्योर्जिओन ने एक अनावृता का भी चित्रण किया था । जिसने सामने की ओर पीठ कर ली है इसके पैरो के निकट जल का स्रतोत है। जिसमें उसका सामने का शरीर प्रतिबिम्बित हो रहा था । एक दिशा में शरीर पर से उतरा हुआ । धातु का चमकदार अंग-वस्त्र था । जिसमें उसके शरीर का पाश्र्व भाग प्रतिबिम्बित हो रहा था । दूसरी दिशा में एक दर्पण रखा था। जिसमें दूसरी ओर का पाश्र्व शरीर दिखायी दे रहा था इस प्रकार इस युक्ति से उसने उसके अनावृत शरीर की चारो ओर की स्थितियां अंकित कर दी थी । तैल माध्यम में उसने व्यक्तिगत उपयोग हेतु छोटे चित्रो की रचना का आरम्भ किया था । जिनमें रहस्यात्मक एवं उत्तेजक विषयों का अंकन किया जाता था । आंधी ज्ीम जमउचमेज नामक चित्र इसका अच्छा उदाहरण है इस चित्र में यूनानी गाथाओं में वर्णित प्राचीन शासक अद्रास्तस तथा रानी हिस्सीपाइल । कतंेजने ंदक पकलचेपचलसम को चित्रित किया गया है। रानी को षडयन्त्रकारियों ने राज्य से निकाल दिया था जो एक धाय के छद्रम वेष में राजा को मिली । यह चित्र आंधी युक्त दृश्य के चित्रण का प्रथम उदाहरण ही । टूटे हुए स्तम्भों आदि सहित दृश्य का सुन्दर संयोजन बहुत समझ बूझ से किया गया है प्रकृति की मनःस्थिति को अंकित करने की दृष्टि से इस चित्र का बहुत महत्व है। इस चित्र की अब तक कोई भी अच्छी रंगीन प्रतिकृति मुद्रित नहीं हो सकती है। इसमे अंकित प्रकाश, आंधी के साथ विधुत की चमक के रंगो द्वारा अंकित बल जो चमकदार तथा अपारदर्शी तलों से प्रतिबिम्बित हो रहे है। श्वेत तथा क्रीम रंग का अत्यत्तम प्रयोग आदि को ही चित्र का वास्तविक विषय माना जाना चाहिऐ । रंगो तथा धरातलीय प्रभावो के द्वारा कल्पनाशील एवं संगीतपूर्ण योजना और वातावरण को प्रस्तुत करने का विचार ही इस चित्र के प्रधान तत्व है।
ज्योर्जिओन की प्रमुख कृतियाॅंः-
ज्योर्जिओन की प्रमुख कृतियो निम्न लिखित है । ज्योर्जिओन की एक अन्य प्रसिद्ध कृति चरागाह में संगीत च्ंेजवतंस ब्वदबमतज है। इसमें दो सम्पन्न पुरुष तथा दो अनावृत युवतियां संगीत की सृष्टि में संलग्न है चित्र का विषय पे्रम तथा सौन्दर्य से सम्बन्धित है किन्तु कलाकार का मुख्य लक्ष्य आकृतियों, प्राकृतिक दृश्य तथा संगीत की अनुभूति को एक लयात्मकता में आबद्ध करना है। इस चित्र की बहुत प्रंशसा की गयी है प्रकृति तथा मानवाकृतियों को एक ही मनः स्थिति तथा वातावरण में ढाल देन का जो प्रयत्न बेल्लिनी ने आरम्भ किया था । वह ज्योर्जिओन ने विकसित हुआ और आगे चलकर तिश्अिन की कला मे चरम शिखर पर पहुंचा । तिशिअन ने रंग तथा प्रकाश को चित्र के सम्पूर्ण विस्तार में बुनने का प्रयत्न किया ।
ज्योर्जिओन का एक अन्य सुन्दर चित्र ही सोती हुई पे्रम की देवी वीनस ेसममचपदह अमदने पीछे प्राकृतिक दृश्य है आगे वीनस अपनी दाहिनी भुजा का तकिया लगाये अधलेटी अंकित है उसका बाया हाथ लज्जाशील स्थिति में है इस चित्र के अनुकरण पर तिशिअन ने भी वीनस का एक चित्र अंकित किया था। जिसके नेत्र खुले है बालो की राशि कन्धे पर आगे लटक कर दर्शको को आमन्त्रित सी कर रही है। दाहिने हाथ में फूल है सम्पूर्ण दृश्य एक कमरे में अंकित है। जिसमे वीनस के पीछे परदा भी है। पृष्ठभूमि में खिडकी जिसमें गमला तथा बेल है दो स्त्रियों तथा एक कुत्ता है कुल मिलाकर ज्योर्जिओन की वीनस जहां स्वर्गीय प्रतीत होती है वहां तिशिअन की वीनस मानवीय सुन्दरी है। 1510 ई0 में उसे वेनिस की एक महिला से पे्रम हो गया था । जिसे प्लेग हो गयी थी । केवल 34 वर्ष की अल्प आयु में ही उनकी मृत्यु हो गई । उनके द्वारा अधूरे छोडे हुये अनेक चित्र तिशिअन तथा सेवाशियानी देल प्योम्बो ने पूर्ण किये ।
ज्योर्जिओन की कला की निम्नांकित विशेषताएंः-
1- रेखा की मादक झिलमिलाहट
2- धूमिल वर्णिका
3- तेज प्रकाश की क्रीड़ा
4- वातावरण की एक सूत्रता आदि ।














तिशिअनः-
जन्म 1487/90 मृत्यु - 1573
तिशिअन अथवा तिजिआनो वैचेल्लियो को इटली का वयोवृद्ध कलाचार्य कहा जाता है सम्भवत इटालियन कालाकारों में सर्वाधिक आयु उसी ने प्राप्त की है उसकी जन्म तिथि के विषय में पर्याप्त मतभेद है। वह आलास के एक पहाडी नगर केडोर में उत्पन्न हुआ था ।  आरम्भ में वह जेन्तील बेण्लिनी तथा तत्पश्चात जिओवानी बेल्लिनी का शिष्य रहा । उस पर ज्योर्जिओन का भी प्रभाव पडा था । ज्योर्जिओन यद्यपि उसका गुरु नहीं था तथापि उसके द्वारा छोडे गये अनेक चित्र तिशिअन ने पूर्ण किये । उसके साथ सेवाश्यिानो ने भी कार्य किया । इस चित्रण ने तिशिअन को उसकी कला की विशेषताएं समझने और उसी की शैली में चित्रण करने का अवसर प्रदान  किया । 1510 में ज्योजिओन की मृत्यु हो गयी । और सेवाशियानो रोम चला गया । इस प्रकार वेनिस मे तिशिअन का कोई प्रतिद्धन्दी नहीं रहा जिओवानी वेल्लिनी इस समय तक पर्याप्त वृद्ध हो चुका था और 1516 में उसकी मृत्यु के उपरान्त वह वेनिस गणराज्य के शासकीय चित्रकार के रुप में प्रतिष्ठित हुआ। इसी समय उसने कुमारी स्वर्गारोहण चित्र आरम्भ किया। जो 1518 ई0 में पूर्ण हुआ इस चित्र में तिशिअन की ख्याति बहुत बढ़ गयी यह चित्र वेनिस में पुनरुत्थान का प्रमथ उद्घोष है।
1520 ई0 में उसने बैक्स तथा एरियाने ठंबीने ंदक ।तपंकदम
शीर्षक चित्र की रचना की जिसमें झूठे पे्रमी थीसियस द्वारा परित्यक्त एरियाने
को मदिरा का देवता बैकस अपने रथ से उत्तर कर सान्तवना दे रहा है। चित्र की आकृतियाॅं, वस्त्रों, प्रकृति रेखाओ एवं रंगो - सभी में अदभुत गीत, सौन्दर्य और वातावरण की मुखरता है जिस पर तिशिअन की जन्म भूमि की प्रकृति की नाटकीयता का प्रभाव माना गया है 1519-26 के मध्य पेसारो वेदी के चित्र में तिशिअन की नवीन शैली का पूर्ण विकास परिलक्षित होता है 1532 ई0 में वह बोलोना में चाल्र्स पंचम से मिला जहां उसने आस्ट्रियन चित्रकार द्वारा अंकित चाल्र्स के एक चित्र की इतनी सुन्दर अनुकृति की कि सम्राट ने उसे 1533 में अपना दरबारी चित्रकार बना लिया । धीरे-धीरे तिश्अिन सम्राट का घनिष्ठ मित्र बन गया । सोलहंवी शती के लिए यह एक अद्वितीय परिस्थिति थी । क्योंकि मिकेलएंजिलो तथा रेफेल से जिओ को छोडकर अन्य कोई कलाकार इस स्थिति तक नहीं पहुच सका था। 1540 ई0 में तिशिअन तथा मिकेल एंजिलो का प्रभाव रीतिवादी कृतियों में देखा जा सकता है। इसी समय उसने रोम की यात्रा की जिसके कारण उसकी कृतियों में किंचित् शास्त्रीयता का प्रवेश हुआ । 1545-46 में पात्र तृतीय तथा उसके पौत्रो एवं 1548-49 में तथा 1550-51 में दरबारी व्यक्ति चित्रों की जो क्रमशः रचना तिशिअन ने की उससे इस प्रकार के चित्रो का एक विशिष्ट स्वरुप विकसित हुआ । इसी का उपयोग आगे चलकर पीटर पाल रुबेन्स आदि ने अपने व्यक्ति चित्रो में किया । 1555 में चाल्र्स की गददी छिन जाने पर तिशिअन स्पेन के फिलिप द्वितीय की सेवा मे चला गया । वहां उसने काव्य एवं पुराण आदि के आधार पर श्रृगांर पूर्ण कथानको का चित्रण किया । इन चित्रो मे तिशिअन ने रंगो का बडी ही उन्मुक्तता से प्रभाववादी शैली के समान प्रयोग किया है। आकृतियों की सीमाएं धूमिल अंकित की गयी है। और आकृतियों को रेखात्मक न बनाकर रंगो के धब्बो के रुप में चित्रित किया गया है। 1560 में उसकी कला की बहुत आलोचना होने लगी पर वास्तव में वह एक नवीन शैली का आविष्कार करने में लगा हुआ था ईसा को कब्र में लिटाना जीम मदजवउइउमदज नामक चित्र को अपूर्ण छोड़कर 1576 ई0 मे वह चलन बसा । इस चित्र को उसके शिष्य पाल्मा जिओवाने ने पूर्ण किया ।
तिशिअन की कला:-
तिशिअन की कला में प्रकाश तथा रंगो को गति एवं संगीत प्रदान की गयी है उसने आकृतियो को मूर्तियों के समान कठोर होने से बचाया और रंगो की शक्ति का पूर्ण उपयोग किया । विषयो की दृष्टि से उसने यद्यपि श्रृगंार पूर्ण कथानको का ही अधिक चिन्हित किया है। तथापित दुःखान्त घटनाओं को भी गम्भीरता एवं करुणा के साथ प्रस्तुत किया है। आधुनिक कला के जन्मदाताओं में उसका भी नाम लिया जाता है।
तिशिअन की कला का चित्रणः-
तिशिअन के चित्रण विधान का विवरणउसके शिष्य पाल्मा ने इस प्रकार दिया है पहले वह चित्र के धरातल पर तूलिका से रंग के धब्बे लगा लेता था। इन धब्बो से बनने वाली अमूर्त-सी आकृतियों उसके मनोभावों को व्यक्त करती थी । इनके हेतु प्रायः गेरुए अथवा श्वेत रंग का प्रयोग किया जाता था। उसी तूलिका को काले लाल अथवा पीले रंगो में डुबो कर केवल तीन चार स्पर्शो में ही वह कमाल की आकृति बना देता था । इसके पश्चात वह उस चित्र को दीवार के सहारे रख देता था और महीनो उसे देखता तक न था । तत्पश्चात जब वह उसे देखता तो एक शत्रु की भाति उसकी आलोचना करता और एक शल्यक की भांति उसे सुधारता ।
इस प्रकार बार बारकार्य करके वह उसे एक श्रेष्ठ कलाकृति  बना देता था । इसके पश्चात उसमें मानवाकृतियों की कल्पना की जाती और शरीरर्णका प्रयोग किया जाता था । चित्र को पूर्ण करते समय वह अति प्रकाश एवं सीमा रेखाओं को कोमल कर देता था । इस कार्य में वह तूलिका से अधिक अंगुलिाओं का प्रयोग करता था । उसके द्वारा अंकित ारी आकृतियों न नवयुवती है न अधेड बल्कि पूर्ण यौवन प्राप्त स्वस्थ एवं बलिष्ठ नारिया है।
तिशिअन के अनेक चित्रः-
तिशिअन से अनेक सुन्दर चित्रो की रचना की है जिसमें कुमारी का स्वर्गारोहण बैकस तथा एरियाने, फलोरा, मेग्देलिन युवक अंगे्रज , दस्ताने सहित पुरुष कामदेव की शिक्षा पिएटा, उर्बीनो की वीनस, कांटो का ताज, यूरोपा का शीलभंग पवित्र तथा अपवित्र पे्रम, परस्यूज तथा एण्डोमेडा एवं राजपरिवारों तथा पाॅदरियों के व्यक्ति चित्रो का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।
पवित्र तथा अपवित्र पे्रम शीर्षक चित्र मे एक कुंए पर बैठी दो स्त्रिया अंकित है एक आवृत दूसरी अनावृत
इन्हे लौकिक तथा स्वर्गीय पे्रम की प्रतीक माना जाता है।
कुछ आलोचको ने इन्हे शीलनता तथा सत्य की प्रतीक भी बताया है उर्बीो की वीनस की रचना ज्योर्जिओन की सोती हुई वीनस ने अनुकरण पर की गई है।



यासमीन
एम0ए0 चतुर्थ सेमिस्टर
2012
अनुक्रमांक;0190010010
चित्रकला विभाग
एम0एम0एच0कालिज
गाजियाबाद
निर्देशन;
MkW0 yky jRukdj
v/;{k
fp=dyk foHkkx
,e0 ,e0 ,p0 dkWfyt
xkft;kckn






रविवार, 15 जुलाई 2012

क्या फिर लुप्त हो जाएगा मोहनजोदड़ो?


http://www.bbc.co.uk/hindi/pakistan/2012/06/120628_mohenjodaro_ak.shtml

क्या फिर लुप्त हो जाएगा मोहनजोदड़ो?

 गुरुवार, 28 जून, 2012 को 18:08 IST तक के समाचार
पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि वे अपने यहाँ के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल मोहनजोदड़ो के अवशेषों की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. मगर कुछ विशेषज्ञों की राय है कि यदि कुछ बड़े क़दम नहीं उठाए गए तो कांस्य युग की ये ऐतिहासिक धरोहर सदा के लिए लुप्त हो जा सकती है.
4500 साल पुराने एक घर के बीच से गुज़रना एक अभिभूत कर देनेवाला अनुभव है.
ख़ासतौर से तब जब वो घर वैसा ही हो जैसा कि आज के दिनों में होता है, जहाँ आगे और पीछे दो दरवाज़े हों, एक-दूसरे से जुड़े कमरे, साफ़-सुथरी पकी ईंटें, यहाँ तक कि एक साधारण शौचालय और नाले भी.
हैरानी ये सोचकर होती है कि जिस घर की बात हो रही है, वो दो मंज़िलों वाला घर था.
मगर इससे भी अधिक रोमांच तब होता है जब आप कांस्य युग की इस असल गली से गुज़रें और इसके दोनों तरफ़ क़तारों में बने घरों को देखें.
और फिर इन रास्तों से गुज़रते-गुज़रते आप पहुँचें एक जगह जहाँ कभी बाज़ार लगा करता था.
ये शानदार योजनाबद्ध शहर है – मोहनजोदड़ो – दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक.
2600 ईसा पूर्व बना ये शहर, अपनी जटिल योजनाबद्ध व्यवस्था, अविश्वसनीय वास्तुविद और जटिल जल और सफाई व्यवस्था के कारण दुनिया की सबसे विकसित शहरी व्यवस्था वाला शहर हुआ करता था.
समझा जाता है कि महान सिंधु घाटी सभ्यता के इस शहर में 35,000 लोग रहा करते थे.

बदहाली

"जब भी मैं यहाँ आती हूँ, मैं पहले से बुरा अनुभव करती हूँ. मैं यहाँ दो-तीन साल से नहीं आई. और अब जो देख रही हूँ तो ये नुकसान देखकर मेरी छाती फटी जा रही है."
डॉं आसमां इब्राहीम, पुरातत्वविद्
मगर इस शहर के आकार और इसकी चमत्कारी व्यवस्था को देखकर जहाँ मैं अभिभूत था, वहीं मुझे वहाँ ले जानेवाली गाइड, पाकिस्तान की प्रख्यात पुरातत्वशास्त्री, लगभग रोने को हो आईं.
डॉक्टर आसमां इब्राहीम ने कहा,”जब भी मैं यहाँ आती हूँ, मैं पहले से बुरा अनुभव करती हूँ.
"मैं यहाँ दो-तीन साल से नहीं आई. और अब जो देख रही हूँ तो ये नुकसान देखकर मेरी छाती फटी जा रही है."
वे वो स्थान दिखाती हैं जहाँ बड़ी क्षतियाँ हुई हैं.
मोहनजोदड़ो के निचले इलाक़े में, जहाँ कि मध्यवर्ग और कामगार तबके के लोग रहा करते थे, दीवारें नीचे से ऊपर की ओर दरक रही हैं. ये नई क्षति है.
भूमिगत जल में मौजूद लवण ईंटों को खा रहा है जो कि खुदाई से पहले, हज़ारों सालों से सुरक्षित रही थीं.
जैसे-जैसे हम शहर के ऊपरी हिस्सों की ओर बढ़ते हैं जहाँ कि सिंधु घाटी सभ्यता की संपन्न आबादी बसा करती थी, और जहाँ कि बड़े स्नानघर होने के संकेत मिलते हैं, वहाँ हालत और ख़राब लगती है.
कुछ दीवारें पूरी तरह गिर गई हैं, कुछ इसके कगार पर पहुँच गई हैं.
अपने समय में मोहनजोदड़ो एक अतिविकसित सभ्यता का एक अतिविकसित शहर हुआ करता था
डॉक्टर इब्राहीम कहती हैं,"संरक्षण के लिहाज़ से ये निःसंदेह एक जटिल स्थान है जहाँ लवणता, आर्द्रता और बारिश की समस्याएँ हैं."
मगर इनके संरक्षण के अधिकतर प्रयास इतने बेकार और बचकाने हैं कि उनसे नुक़सान और बढ़ा ही है.
इनमें एक उपाय ईंटों के ऊपर मिट्टी की कीचड़ का लेप करना था ताकि ये कीचड़ लवण और आर्द्रता को सोख ले.
मगर एक ओर जहाँ कीचड़ सूखकर टूट गई, वहीं उसने साथ-साथ पुरानी ईंटों के टुकड़ों को भी खींच लिया.
इस स्थान पर ऐसी जगहें भी दिखती हैं जहाँ कि सदियों पुरानी ईंटों के स्थान पर नई ईंटें लगा दी गईं.
मोहनजोदड़ो में म्यूज़ियम तक को लूट लिया गया और वहाँ से कई प्रख्यात चीज़ें चोरी कर ली गईं जिनमें मोहर भी हैं जिनका प्रयोग संभवतः व्यापारी छापे लगाने के लिए करते थे. उनको दोबारा बरामद नहीं किया जा सका.
इस जगह मौजूद एक गाइड ने भी बताया कि उसने इस ऐतिहासिक स्थल की हालत और रख-रखाव में तेज़ गिरावट होते देखा है.
वो कहता है कि हालाँकि अभी भी पाकिस्तानी पर्यटक आते हैं, मगर मोहनजोदड़ो आनेवाले विदेशी पर्यटकों की संख्या बहुत कम रह गई है.

नाकाम सरकारें

"हमें बहुत जल्दी कुछ करना पड़ेगा क्योंकि यदि ऐसा ही चलता रहा तो मेरा अनुमान है कि ये स्थल 20 साल से अधिक नहीं बचा रह सकेगा"
आसमां इब्राहीम
इस ऐतिहासिक धरोहर के साथ हो रहे नुक़सान को रोक पाने में कमज़ोर सरकारी पर्यटन रणनीति सक्षम नहीं हो पा रही.
पहले कई दशकों तक इसकी देख-रेख का ज़िम्मा पाकिस्तान सरकार पर था मगर हाल के समय में ये दायित्व सिंध की प्रांतीय सरकार को सौंप दिया गया.
सिंध सरकार ने अब इस स्थल के उद्धार के लिए एक तकनीकी टीम का गठन किया है.
डॉक्टर इब्राहीम कहती हैं,”हमें मोहनजोदड़ो की रक्षा के लिए हर क्षेत्र के लोगों की बात सुननी पड़ेगी.
"ये सही है कि वहाँ लवणता है. मगर स्थानीय किसान इसका इलाज जानते हैं. फिर हम क्यों नहीं?
"मगर हमें बहुत जल्दी कुछ करना पड़ेगा क्योंकि यदि ऐसा ही चलता रहा तो मेरा अनुमान है कि ये स्थल 20 साल से अधिक नहीं बचा रह सकेगा."
एक राहत की बात ये है कि शहर का कुछ हिस्सा अभी भी खोदा जाना बाकी है और इस तरह से वो सुरक्षित है.
कुछ विशेषज्ञों ने तो यहाँ तक कहा है कि पूरे के पूरे मोहनजोदड़ो को ही फिर से ढंक देना चाहिए ताकि और नुकसान ना हो.
और ये उन लोगों की हताशा का परिचायक है जो मोहनजोदड़ो को प्यार करते हैं और जिन्हें उस स्थल को नुक़सान होता देख पीड़ा हो रही है जो अपने समय में मिस्र, मेसोपोटामिया और चीन जैसी प्राचीन सभ्यताओं से टक्कर लिया करता था.

शुक्रवार, 8 जून 2012

कला


कला से गुम हुआ महारानी के विरोध के स्वर

 शुक्रवार, 8 जून, 2012 को 12:52 IST तक के समाचार
अभी कुछ दिनों पहले इंग्लैंड की महारानी की हीरक जयंती धूमधाम से मनाई गई.
वर्ष 1977 में जब महारानी की रजत जयंती मनाई गई थी, तब जश्न मनाते हुए लहराते झंडो के साथ विरोध के स्वर भी प्रखर थे जो राजवंश के विरोधी स्वर थे.

ऐसा बदलाव क्यों आया है, जानने के लिए बीबीसी संवाददाता विंसेट दौद पंहुचे लंदन की फैशन-परस्त हेल्स गैलरी में जहां कलाकार ह्यू लॉक ने अपनी कलाकृति डेमेटर को दर्शाया है.पैंतीस साल बाद जब महारानी की हीरक जयंती मनाई गई तब विरोध की आवाज न के बराबर सुनाई दी.
"इस बार कितने लोग जुबिली समारोह में आए इसे देखकर मुझे निराशा हुई. मुझे खुशी होगी अगर आने वाले कुछ दनों में मनोरंजन जगत और मीडिया से लोग आगे आएं और इसका विरोध जताए, ऐसो लोग जो खुद को रिपब्लिकन कहते हैं."
कलाकार शॉन फेदरस्टोन
डेमेटर फसल कटने की देवी मानी जाती है. डेमेटर की कलाकृति खूबसूरत लगती है, लेकिन जरा गौर से देखें तो सर पर शाही घराने की झलक साफ दिखाई देती है.

लोकप्रिय

लॉक कहते हैं, "ये सस्ते खिलौने और जेवरात से बनाया गया है. इसमें छिपकलियां हैं, तितलियां हैं, खोपड़ी है. लेकिन ये सभी स्पष्ट नहीं है बल्कि छुपे हुए हैं. ये कलाकृति खूबसूरत है तो दूसरी तरफ तौहीन करने वाली भी है. दरअसल मैं न तो रिपब्लिकल हूं और न ही राजतंत्र का समर्थक."
लॉक की राजघराने की ये तस्वीरें लोगों में लोकप्रिय हो रही हैं. उनकी ऐसी ही दूसरी तस्वीर लंदन की नैशनल गैलरी की शोभा बढ़ा रही है. इन कलाकृतियों में थोड़ी बहुत धार भी है तो राजघराने को गिराने के काबिल तो कतई नहीं है. लेकिन 25 साल पहले रजत जयंती के वक्त कला और कलाकार इतने शिष्ट और नरम नहीं थे.
वर्ष 1977 में सेक्स पिस्टल की गॉ़ड सेव द क्वीन ने लोगों में गहरे रोष और निराशावादिता को दर्शाता था.
वही लहर उस साल कलाकार डेरेक जारमैन की फिल्म जुबिली में भी दिखाई दी जिसमें उन्होंने 70 के दशक के ब्रिटेन के चेहरे को अंधकारमय दिखाया था.
जारमैन ने पंक रॉक को लेते हुए एक कॉस्ट्यूम ड्रामा बनाया था.

विरोध

लेकिन इस ड्रामे में 77 की जयंती की बेइज्जती और निर्वस्त्रता का बेहिसाब इस्तेमाल कर इसे विवादित बना दिया था.
कला जगत में समारोह के विरोध में ज्यादा काम नहीं हुआ.
जारमैन की इस पिक्चर में कार्ल जॉनसन ने स्फिंक्स का रोल किया था. जॉनसन कहते हैं, "आज यू ट्यूब के जमाने में लोग पहले ही इतना खौफ, भय और वीभत्स देख चुके होतें हैं कि अब उन्हें कोई झटका देना या सदमे में लाना ज्यादा मुश्किल काम हो गया है."
इस बार के समारोह में शॉन फेदरस्टोन शायद इकलौते कलाकार है जो इस दिखावेपन का विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने एक अखबार निकाला है जिसके कुछ अंश गंभीर है तो कुछ अंश में मजाक उड़ा गया है.
इस अखबार का उन्होंने नाम रखा है द ग्रेट फ्रॉक एंड रोब स्वाइंडल.

बहस

फेदरस्टोन कहते हैं, "आज देश में लोकतंत्र पर बहस चल रही. आप बस उसे देख नहीं सक रहे हैं क्योंकि वो लोगों के बीच हो रही है. इस बार कितने लोग जुबिली समारोह में आए इसे देखकर मुझे निराशा हुई. मुझे खुशी होगी अगर आने वाले कुछ दिनों में मनोरंजन जगत और मीडिया से लोग आगे आएं और इसका विरोध जताए, ऐसो लोग जो खुद को रिपब्लिकन कहते हैं."
शॉन फेदर स्टोन गर्व से 1897 में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती पर लेबर के राजनेता कीयर हार्डी का राजवंश पर चोट करता हुआ लेख दिखाते हैं.
दरअसल इस साल के समारोह में विरोध के स्वर ढूंढने का मतलब सिर्फ पुरानी बातों को याद कर लेना ही रह गया है

मंगलवार, 1 मई 2012

ममी से मिला कैंसर का प्रमाण


ममी से मिला कैंसर का प्रमाण

 बुधवार, 2 मई, 2012 को 02:36 IST तक के समाचार
लगभग तीन हजार साल पुराने ममी पर किए गए शोध से पता चला है कि लोगों की मौत कैंसर जैसे बीमारी से होती थी.
जो लोग मानते हैं कि कैंसर हाल-फिलहाल की बीमारी है, उन्हें यह कहने से पहले अब कई बार सोचना होगा.
डॉक्टरों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि कैंसर जैसी बीमारी से लोग पहले भी मरते रहे हैं. डॉक्टरों के एक दल ने करीब 2900 साल पुरानी एक ममी पर शोध करने के बाद पाया है कि मिस्र के एक आदमी की मौत कैंसर जैसी बीमारी से हुई थी.
डॉक्टरों का यह भी कहना है कि जिस वक्त उस व्यक्ति की मौत हुई थी, उस वक्त वह मधुमेह से पीड़ित था और उसकी उम्र बीस वर्ष के आस-पास रही होगी.

स्पष्ट निशान

"पुराने समय में यह बीमारी बहुत ही घातक थी, लेकिन आजकल इसका इलाज संभव है"
ममी का अध्ययन कर रहे चिकित्सा दल के प्रमुख डॉक्टर मिशलाव काव्का
प्राचीन काल के उस ममी के शरीर पर एक स्पष्ट निशान भी है जिससे पता चलता है कि मौत से पहले उनकी क्या हालत हुई होगी और उनकी मौत कितनी घातक रही होगी.
यह ममी इस वक्त क्रोशिया में जागरेब विश्वविद्यालय के संग्रहालय में रखी है.
ममी का अध्ययन कर रहे चिकित्सक दल के प्रमुख और जागरेब विश्वविद्यालय के डॉक्टर मिशलाव काफ्का का कहना है, “ऐसा लगता है कि उस बीमारी ने उस व्यक्ति की हड्डी और अन्य दूसरे नाजुक (टीशू) को बुरी तरह प्रभावित कर दिया था.”
डॉक्टर काफ्का ने लाइव साइंस पत्रिका को बताया, “हम उनके उपर किए गए शोध के आधार पर कह सकते हैं कि यह एक प्रकार का कैंसर है.”

पुरूषों में थी बीमारी

हालांकि डॉक्टर अभी भी बीमारी की वजह को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं, लेकिन उनका मानना है कि यह बहुत ही असामान्य बीमारी है. डॉक्टरों के अनुसार यह बीमारी पांच लाख साठ हजार लोगों में से किसी एक व्यक्ति, खासकर किसी पुरूष में पाई जाती है.
डॉक्टर काफ्का का यह भी कहना है, “पुराने समय में यह बीमारी बहुत ही घातक थी, लेकिन आजकल इसका इलाज संभव है.”
पहले माना जाता था कि ममी के रूप में रखा गया यह ताबूत कारसेत नामक महिला का है जिसे लगभग 2300 वर्ष पहले वहां लाया गया था.
अलग-अलग समय में तीन ममी पर किए गए शोध से पता चला है कि पहले भी कैंसर की बीमारी होती थी
लेकिन काफ्का और उनके सहयोगी डॉक्टरों ने ममी का अध्ययन करने के लिए एक्स रे, सीटी स्कैन, एमआरआई और अन्य विकसित तकनीक की मदद से यह निष्कर्ष निकाला कि वह पुरूष है.
ममी का स्कैन करने के बाद पता चला कि इसकी खोपड़ी में बहुत बड़ा छेद हो गया है और एक आँख के सॉकेट को काफी क्षति पहुंची है.

प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर काव्का

"जब वह मरा होगा तो वह प्यासा रहा होगा, भूखा भी होगा और हो सकता है कि उसे पेशाब भी लगा हो"
शोधकर्ताओं का कहना है कि हो सकता है कि शव को ममी बनाने के दौरान लेप करते समय शरीर को नुकसान पहुंचा हो.

मधुमेह से पीड़ित

उसके अलावा वह मधुमेह से भी परेशान रहा होगा. स्कैन रिपोर्ट से पता चलता है कि ममी के पीयूष ग्रंथि का भाग छिछला हो गया है. इसका मतलब यह भी है कि पीयूष ग्रंथि को भी बीमारी से नुकसान पहुंचा था.
प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर काफ्का के अनुसार, “जब वह मरा होगा तो वह प्यासा रहा होगा, भूखा भी होगा और हो सकता है कि उसे पेशाब भी लगी हो.”
वैज्ञानिकों के बीच इस पर लंबे समय से बहस होती रही है कि प्राचीन काल में कैंसर की बीमारी थी या नहीं. पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि जिन्दगी के अंतिम दिनों में प्रदूषण से यह बीमारी होती थी.

पुरानी बीमारी

वैसे कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि कैंसर की बीमारी तो होती ही थी लेकिन ये पता लगाना बहुत मुश्किल था कि यह बीमारी कैंसर ही है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह प्राचीन मिस्र का तीसरा व्यक्ति है जिसमें कैंसर से उनके मरने का प्रमाण मिला है. डॉक्टर काफ्का का कहना है कि उस वक्त भी यह बीमारी आज की तरह उतनी ही मारक रही होगी.

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GHAZIABAD, Uttar Pradesh, India
कला के उत्थान के लिए यह ब्लॉग समकालीन गतिविधियों के साथ,आज के दौर में जब समय की कमी को, इंटर नेट पर्याप्त तरीके से भाग्दौर से बचा देता है, यही सोच करके इस ब्लॉग पर काफी जानकारियाँ डाली जानी है जिससे कला विद्यार्थियों के साथ साथ कला प्रेमी और प्रशंसक इसका रसास्वादन कर सकें . - डॉ.लाल रत्नाकर Dr.Lal Ratnakar, Artist, Associate Professor /Head/ Department of Drg.& Ptg. MMH College Ghaziabad-201001 (CCS University Meerut) आज की भाग दौर की जिंदगी में कला कों जितने समय की आवश्यकता है संभवतः छात्र छात्राएं नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षा के साथ प्रयोग और विश्वविद्यालयों की निति भी इनके प्रयोगधर्मी बने रहने में बाधक होने में काफी महत्त्व निभा रहा है . अतः कला शिक्षा और उसके उन्नयन में इसका रोल कितना है इसका मूल्याङ्कन होने में गुरुजनों की सहभागिता भी कम महत्त्व नहीं रखती.