With Courtesy- BBC HINDI | |||||||||||||||||
दिल्ली की एक नीताशा जैनी की पेंटिंग देखकर उनकी एक महिला प्रशंसक ने कहा, "औरतों की नंगी तस्वीरें देख-देख कर मैं इतना थक चुकी थी कि बिना कपड़ों के मर्दों की पेंटिंग्स देख कर मुझे लगा कि पलड़ा अब बराबर हुआ है." इस पर जैनी की प्रतिक्रिया थी, "मुझे अब महसूस हुआ कि अब वो वक्त आ गया है जब मेरे काम को सही तरीके से समझा जा सकता है." नीताशा का विषय भी, उन्हीं की तरह बेलाग है, अलग-अलग तरीक़े से पेंट किए गए नग्न पुरुष. उनका मानना है कि "औरत की नग्न पेंटिंग चाहे किसी भी मक़सद से क्यों न बनाई गई हो, देखने वाले को शारीरिक सुख की अनुभूति देती ही है, जबकि पुरुष की पेंटिंग के साथ ऐसा नहीं होता." तंदूरी चिकन और लाजवाब खाने के लिए मशहूर अमृतसर में पली-बढ़ी नीताशा के लिए अपनी ज़िद के चलते शुरु किया गया काम, आख़िर उनका पेशा बन गया. वे कहती हैं, "बरसों पहले की औरतों ने अपनी हिम्मत और दृढ़ता से जो ज़मीन तैयार की, उसी की बदौलत आज मैं मज़बूती से पाँव जमाकर अपने काम को अंजाम दे पा रही हूँ. मैंनें पुरुष को प्रकृति से जोड़कर देखा है और यह बताने के लिए कि नई पीढ़ी की भारतीय औरत के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है, मैं नग्न पुरुष को कैनवास पर उतारती हूँ." अपने छोटे से स्टूडियो में नंगे मर्दों की पेंटिंग से घिरी नीताशा कहती हैं ‘मैंनें अपने अंतरंग क्षणों को एक औरत के साथ-साथ एक पेंटर की हैसियत से भी जिया है, इसलिए पुरुष को कैनवास पर बिना कपड़ों के उकेरना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं रहा." व्यावसायिक रिश्ता पुरूष मॉडलों के बारे में वे कहती हैं, "उनके साथ मेरा रिश्ता पूरी तरह से व्यावसायिक रहा है, वे या तो पैसे के लिए काम करते हैं या फिर अपनी भावनात्मक संतुष्टि के लिए. वैसे भी अपने देश में खुले में आदमियों को बिना कपड़ों के देखना आम बात है. तो मेरे लिए ये समस्या कभी नहीं रही." पाँच से पचास हज़ार के बीच उनके 'पुरुष' बिकाऊ हैं, और उन घरों में सजती हैं उनकी पेंटिंग्स जिन्हें उनके अनुसार कला की समझ है. नीताशा जैनी का कहना है कि समाज ने कभी सीधे-सीधे मुझ पर सवाल नहीं दाग़े, लेकिन शुरु में ससुराल की तरफ से मुझे काफी दिक़्कतों का सामना करना पड़ा और पति ने भी साथ नहीं दिया, पर धीरे धीरे मैं उन्हें समझाने में क़ामयाब हो गई. पुरुषों को उनका काम देख कर कैसा लगता है? हँसते हुए उनका जवाब था, "कुछ लोगों का बस चलता तो वो मुझे किसी दूसरे ग्रह पर ही फेंक देते. दरअसल उनमें हिम्मत ही नहीं होती ऐसी पेंटिंग्स देखने की जो उनकी ‘ईगो’ पर चोट करतीं हो." वे चुकटी लेती हैं, "कई बार जब वो मुझसे बातें करते हुए आँखें झुका लेते हैं, तो एक औरत होने के नाते मुझे बेहद ख़ुशी होती है क्योंकि सदियों तक हमने ऑखें झुकाईं हैं, और अब उनकी बारी है." आजकल नीताशा नए प्रयोग भी कर रहीं हैं. अब वो नग्न मॉडलों की तस्वीरों को अपनी पेंटिंग्स में शामिल कर रहीं हैं. चटख रंगों में उनकी पेंटिंग्स मानवीय भावनाओं को पुरुष शरीर के ज़रिए बड़ी ख़ूबसूरती से उभारतीं हैं. उनके काम की तारीफ़ देश-विदेश सभी जगह हुई है, आलोचकों और दर्शकों ने उनकी पेंटिंग्स को समान रुप से सराहा है. |
शुक्रवार, 27 अगस्त 2010
कूची से कपड़े उतारने की कला
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ब्लॉग आर्काइव
-
▼
2010
(59)
-
▼
अगस्त
(25)
- पूर्व पुनर्जागरणकालीन चित्र
- Art Htstory
- Fresco Technique Historically
- फ्रेस्को - एक - नई पुरानी तकनीक:
- फ्रेस्को का इतिहास PAINTING
- Early Renaissance
- कला
- कूची से कपड़े उतारने की कला
- AU-News
- ALBA, Macrino d' (b. ca. 1460, Alba, d. ca. 1528, ...
- बहस
- संवाद
- चित्रकार और इंस्टॉलेशन कलाकार सुबोध गुप्ता से गीता...
- Secret of Mona Lisa smile revealed
- रविवार से से साभार - डॉ.लाल रत्नाकर
- बहस
- वॉन गॉग
- ललित कलाएं
- कला का अर्थ
- भारतीय दर्शन का स्त्रोत
- भारतीय दर्शन शास्त्री
- What is Art
- भरत की सौंदर्य दृष्टि | नाट्य प्रसंग से साभार-
- रज़ा से बातचीत- पहला हिस्सा
- Syllabus of Semester System M.A. Drawing & Painting
-
▼
अगस्त
(25)
मेरे बारे में
- चित्रकला
- GHAZIABAD, Uttar Pradesh, India
- कला के उत्थान के लिए यह ब्लॉग समकालीन गतिविधियों के साथ,आज के दौर में जब समय की कमी को, इंटर नेट पर्याप्त तरीके से भाग्दौर से बचा देता है, यही सोच करके इस ब्लॉग पर काफी जानकारियाँ डाली जानी है जिससे कला विद्यार्थियों के साथ साथ कला प्रेमी और प्रशंसक इसका रसास्वादन कर सकें . - डॉ.लाल रत्नाकर Dr.Lal Ratnakar, Artist, Associate Professor /Head/ Department of Drg.& Ptg. MMH College Ghaziabad-201001 (CCS University Meerut) आज की भाग दौर की जिंदगी में कला कों जितने समय की आवश्यकता है संभवतः छात्र छात्राएं नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षा के साथ प्रयोग और विश्वविद्यालयों की निति भी इनके प्रयोगधर्मी बने रहने में बाधक होने में काफी महत्त्व निभा रहा है . अतः कला शिक्षा और उसके उन्नयन में इसका रोल कितना है इसका मूल्याङ्कन होने में गुरुजनों की सहभागिता भी कम महत्त्व नहीं रखती.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें