नीलाम किए गए 'हिटलर' के बनाए चित्र | |||||
इंग्लैंड में 21 ऐसे चित्रों की नीलामी हुई है जिनके बारे में बताया जा रहा है कि इन चित्रों को तनाशाह शासक हिटलर ने बनाया था. यह नीलामी दक्षिण पश्चिमी इंग्लैंड के एक कस्बे में हुई जहाँ इन सभी 21 चित्रों के लिए एक करोड़ रूपए से भी ज़्यादा की बोली लगी. इनमें से 19 चित्र पानी के रंगों से बने हैं जबकि दो स्केच हैं. नीलामी का आयोजन करने वालों ने बताया कि ये चित्र बेल्जियम के एक फॉर्म हाउस से मिल हैं. नीलामी आयोजित करने वाले समूह जेफ़्रिज़ की ओर से बताया गया है कि वो इस बात से सहमत हैं कि ये सभी चित्र हिटलर ने ही बनाए हैं. पहले विश्व युद्ध के दौरान हिटलर एक युवा सैनिक के रूप में बेल्जियम में ही थे. सत्यता पर शक इन चित्रों में ग्रामीण दृश्यों और झोपड़ियों को दिखाया गया है. हालांकि इन चित्रों के इतिहास के बारे में पूरे तौर पर जानकारी उपलब्ध नहीं है. नीलामी आयोजित करने वाले समूह जेफ़्रिज़ ने बताया कि इन चित्रों के विक्रेता ने यह स्थापित करने के सभी संभव प्रयास किए कि इन चित्रों को हिटलर ने ही बनाया था. युवावस्था में हिटलर एक अच्छे चित्रकार के रूप में भी जाने जाते थे. उन्होंने कई स्केच और चित्र बनाए थे. ग़ौर करने वाली बात यह है कि नीलामी के कारोबार से जुड़े कई बड़े समूह ऐसी कलाकृतियों को बेचने से बचते रहे हैं जिनके बारे में दावा किया गया हो कि उन्हें हिटलर ने बनाया था. |
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
बीबीसी हिंदी से साभार -
बीबीसी हिंदी से साभार -
पिकासो के बनाए रेखाचित्रों की नीलामी | ||||
प्रसिद्ध स्पेनी चित्रकार पाब्लो पिकासो के बनाए 20 रेखाचित्रों की सोमवार को पेरिस में नीलामी हो रही है. इन चित्रों को बेच रही है पिकासो की पूर्व प्रेमिका गेनेविएव लापोर्ते. 1950 के दशक में लोपोर्ते और पिकासो का दो साल गुप्त रुप से प्रेम चला था. लापोर्ते ने कहा कि वो एक बार फिर पिकासो को स्थापित करना चाहती है. महिलाओं के साथ संबंधों के मामले में पिकासो को काफी घमंडी और गुस्सैल माना जाता रहा है. 79 वर्षीय लापोर्ते ने उम्मीद जताई कि कोई एक व्यक्ति इन सभी रेखाचित्रों को खरीद लेगा. उन्होंने कहा " ये रेखाचित्र किसी नदी की तरह हैं. जहां आप पानी की बूंदों को अलग नहीं कर सकते. " लापोर्ते ने इन रेखाचित्रों को पिकासो के संबंधियों को देने से भी इंकार किया था. उनका कहना था कि पिकासो के संबंधी इन रेखाचित्रों के साथ लापोर्ते की पिकासो के साथ पहली मुलाक़ात 1944 में हुई थी जहां लापोर्ते ने अपने स्कूल के अख़बार के लिए पिकासो का इंटरव्यू किया था. लापोर्ते ने कहा " जब मैंने पहली बार पिकासो को देखा था तो वे बहुत प्यारे और अच्छे लगे थे. " इसके छह साल बाद दोनों के बीच प्रेम संबंध बने. जब दोनों का प्रेम हुआ तो पिकासो और लापोर्ते के बीच उम्र का बड़ा अंतर था. 1951 में जब दोनों का प्रेम चरम पर था तो पिकासो ने सेंट ट्रोपेज़ में लापोर्ते की कई तस्वीरें बनाईं. कुछ तस्वीरों पर लिखा हुआ है. " गेनेविएव के लिए". पिकासो ने दो साल के बाद अपनी एक अन्य प्रेमिका फ्रैंकोयज़ गिलोस से संबंध टूटने के बाद लापोर्ते को अपने साथ रहने के लिए बुलाया जिसे लापोर्ते ने ठुकरा दिया. लापोर्ते ने 1959 में शादी कर ली और आगे चलकर जानी मानी फ़िल्ममेकर और कवयित्री के रुप में उनकी पहचान बनी. |
बीबीसी हिंदी से साभार -
'द लास्ट सपर' अब इंटरनेट पर | ||||
जाने माने रोमन चित्रकार लियोनार्दो दा विंची की मशहूर कलाकृति द लास्ट सपर की बेहद स्पष्ट तस्वीर अब इंटरनेट पर भी देखी जा सकती है. स्पष्ट इसलिए क्योंकि इस चित्र की प्रति बनाई गई है अरबों पिक्सल के एक कैमरे से. इंटरनेट पर जारी 16 अरब पिक्सल की ये तस्वीर पहले की तुलना में बिल्कुल साफ नज़र आती है. यानि अब ये पूर्व के एक करोड़ पिक्सल के डिजिटल कैमरा से खींची गई तस्वीर से 1600 गुना ज़्यादा स्पष्ट है. 15वीं सदी में बनी इस तस्वीर को इंटरनेट के जरिए देखने के वास्ते कई तकनीकी सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं. जैसे तस्वीर के जिस हिस्से को प्रमुखता से देखना हो उसे चुनकर बड़ा या छोटा करके स्पष्ट देखा जा सकता है. इसके साथ साथ इसके हर हिस्से के बारे में सूक्ष्म जानकारी भी उबलब्ध है. ऐतिहासिक कलाकृति वास्तविक रूप में ये कलाकृति इटली के मिलान शहर के सांता मारिया डेले ग्रेजी चर्च में रखी है.इसे इंटरनेट पर जारी करने के पीछे प्रदूषण से इसे होने वाला लगातार नुकसान बताया गया है. आर्ट क्यूरेटर एल्बर्टो अर्तियोली ने एपी को बताया कि इंटरनेट पर आप इस तस्वीर के हर हिस्से को जूम यानि बड़ा करके निहार सकते हैं जबकि वास्तविक तस्वीर में यह बेहद मुश्किल होता है. इसे http://www.haltadefinizione.com पर देखा जा सकता है. अर्तियोली ने कहा 'आप देख सकते हैं कि लियोनार्डो ने इस तस्वीर में मौजूद कप को किसप्रकार पारदर्शी बनाया है. जबकि वास्तविक तस्वीर में इसे देख पाना संभव नहीं होता. इसके साथ ही इस कलाकृति में हुए क्षय को भी महसूस किया जा सकता है.' विंची की इस तस्वीर को लगातार हो रहा नुकसान हाल के दिनों में काफी चर्चा और चिंता का विषय रहा था. इटली के एक अख़बार के अनुसार 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में इस तस्वीर को संरक्षित करने का तरीका कारगर नहीं रहा, और दर्शकों के कारण भी इस तस्वीर को धूल और गंदगी से काफी नुकसान पहुंचा था. द लास्ट सपर को लियोनार्डो द विंची ने 15वीं सदी के आखिरी वर्षों में बनाई थी. हर साल लगभग साढ़े तीन लाख लोग इस कलाकृति को देखने आते हैं. |
बीबीसी हिंदी से साभार -
बामियान में मिले सबसे पुराने तैल चित्र | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पेरिस, ब्रिटेन या अन्य यूरोपीय देशों के इस तर्क पर इतराने के दिन अब जाते नज़र आ रहे हैं जिसके मुताबिक तैल चित्र बनाने की परंपरा यूरोप में शुरू हुई. तैल चित्रों यानी ऑयल पेंटिंग की शुरुआत यूरोप से नहीं, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप से हुई है. ये कहना है यूरोप, अमरीका और जापान के वैज्ञानिकों के एक दल का. जिन चित्रों के आधार पर वैज्ञानिक दल यह बात कह रहा है, वे गौतम बुद्ध के हैं और ये अफ़ग़ानिस्तान के बामियान की गुफ़ाओं में हैं. इस ताज़ा खोज से साफ़ पता चलता है कि पूरब में सबसे पहले तैल चित्र बनाने की शुरुआत हुई. यूरोपीय कला के इतिहास की किताबों में अभी तक यह पढ़ाया जाता है कि ऑयल पेंटिंग की शुरुआत यूरोप में 15वीं शताब्दी में हुई. पर ताज़ा वैज्ञानिक शोध से ये बात ग़लत साबित हुई है. बामियान की कला इस दल का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के बामियान में जो तैल चित्र मिले हैं वो 7वीं शताब्दी के हैं यानी यूरोपीय तैल चित्रों से कोई 800 साल पहले के. यूरोप, अमरीका और जापान के वैज्ञानिकों के एक दल ने संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनेस्को की मदद से ये शोध किया है. गौतम बुद्ध की दो विशाल मूर्तियाँ काबुल से 250 किलोमीटर दूर बामियान में हैं जिनके पास लगभग 50 गुफ़ाएँ हैं. ये वही विश्वप्रसिद्ध मूर्तियाँ हैं जिनको तालेबान चरमपंथियों ने वर्ष 2001 में ध्वस्त करने की कोशिश की थी और इन्हें भारी नुकसान पहुँचाया था.
इतिहासकार बताते हैं कि इन मूर्तियों के पास की गुफ़ाओं में किसी समय में बौद्ध भिक्षु पूजा अर्चना करते थे और ध्यान लगाते थे. इन 50 कंदराओं में से 12 में तैल चित्र मिले हैं. उदाहरण के लिए एक तैल चित्र में सिंदूरी रंग के कपड़े पहने गौतम बुद्ध बैठे हैं और उनके आस-पास मिथकीय जीव जंतु दिखाए गए हैं. अदभुत शोध वैज्ञानिकों के दल की नेता योको तानिगुची का कहना है, "दुनिया में इससे पुराने तैल चित्र कहीं नहीं मिले हैं. प्राचीन काल में रोम और मिस्र की सभ्यता के समय दवाओं और प्रसाधनों में तेल का उपयोग तो किया जाता था लेकिन बामियान से पुराने तैल चित्र नहीं मिले हैं." वो बताती हैं, "राजनीतिक कारणों से मध्य एशिया में कला पर शोध करना मुश्किल होता है लेकिन बामियान के बुद्ध विश्व धरोहर स्थल या वर्ल्ड हेरिटेज साइट हैं इसीलिए युनेस्को की मदद से हम यहाँ अध्ययन कर सके." फ़्राँस के ग्रेनोबल्स स्थित यूरोपियन सिंक्रोट्रॉन रेडियेशन फ़ेसिलिटी में आधुनिक तकनीकों की मदद से यह शोध किया गया. चित्रों को सिल्क रूट यानी उस रास्ते से भी जोड़ा जा रहा है जिसके ज़रिए चीन और भारत और पश्चिमी देशों के बीच व्यापार किया जाता था. माना जा रहा है कि संभवत: बामियान की गुफ़ाओं में दीवारों पर ये तैल चित्र उन कलाकारों ने बनाए हैं जो सिल्क रूट के ज़रिए कई देशों में आया-जाया करते थे. |
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मेरे बारे में
- चित्रकला
- GHAZIABAD, Uttar Pradesh, India
- कला के उत्थान के लिए यह ब्लॉग समकालीन गतिविधियों के साथ,आज के दौर में जब समय की कमी को, इंटर नेट पर्याप्त तरीके से भाग्दौर से बचा देता है, यही सोच करके इस ब्लॉग पर काफी जानकारियाँ डाली जानी है जिससे कला विद्यार्थियों के साथ साथ कला प्रेमी और प्रशंसक इसका रसास्वादन कर सकें . - डॉ.लाल रत्नाकर Dr.Lal Ratnakar, Artist, Associate Professor /Head/ Department of Drg.& Ptg. MMH College Ghaziabad-201001 (CCS University Meerut) आज की भाग दौर की जिंदगी में कला कों जितने समय की आवश्यकता है संभवतः छात्र छात्राएं नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षा के साथ प्रयोग और विश्वविद्यालयों की निति भी इनके प्रयोगधर्मी बने रहने में बाधक होने में काफी महत्त्व निभा रहा है . अतः कला शिक्षा और उसके उन्नयन में इसका रोल कितना है इसका मूल्याङ्कन होने में गुरुजनों की सहभागिता भी कम महत्त्व नहीं रखती.