सोमवार, 26 जुलाई 2010
सोमवार, 5 जुलाई 2010
हम पर शक न कीजिए
हम पर शक न कीजिए | |
भानु भारती | |
Story Update : Sunday, July 04, 2010 9:47 PM | |
यह एक बहुत बड़ा भ्रम है कि लेखक और कलाकार सामाजिक रूप से सक्रिय नहीं होते और हमेशा यूटोपिया में जीते रहते हैं। कलाकारों का काम चौराहे पर खड़े होकर भाषण देना नहीं, बल्कि सृजन करना है। यह एक ऐसा काम है, जिसका शाश्वत महत्व है, जबकि राजनीति तो अल्पजीवी और सामयिक है। चूंकि लेखक और कलाकार समाज में रहते हैं, ऐसे में, यह कहना और भ्रामक है कि वे समाज से जुड़े नहीं होते। अगर वे समाज से जुड़े नहीं होते, तो रचनात्मकता का निर्वाह कैसे करते हैं। अगर वे आदर्शलोक में जीते, तो वर्तमान और भविष्य के लिए रास्ता दिखाने का काम भला कैसे करते हैं? |
मेरे बारे में
- चित्रकला
- GHAZIABAD, Uttar Pradesh, India
- कला के उत्थान के लिए यह ब्लॉग समकालीन गतिविधियों के साथ,आज के दौर में जब समय की कमी को, इंटर नेट पर्याप्त तरीके से भाग्दौर से बचा देता है, यही सोच करके इस ब्लॉग पर काफी जानकारियाँ डाली जानी है जिससे कला विद्यार्थियों के साथ साथ कला प्रेमी और प्रशंसक इसका रसास्वादन कर सकें . - डॉ.लाल रत्नाकर Dr.Lal Ratnakar, Artist, Associate Professor /Head/ Department of Drg.& Ptg. MMH College Ghaziabad-201001 (CCS University Meerut) आज की भाग दौर की जिंदगी में कला कों जितने समय की आवश्यकता है संभवतः छात्र छात्राएं नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षा के साथ प्रयोग और विश्वविद्यालयों की निति भी इनके प्रयोगधर्मी बने रहने में बाधक होने में काफी महत्त्व निभा रहा है . अतः कला शिक्षा और उसके उन्नयन में इसका रोल कितना है इसका मूल्याङ्कन होने में गुरुजनों की सहभागिता भी कम महत्त्व नहीं रखती.