मंगलवार, 1 मई 2012

ममी से मिला कैंसर का प्रमाण


ममी से मिला कैंसर का प्रमाण

 बुधवार, 2 मई, 2012 को 02:36 IST तक के समाचार
लगभग तीन हजार साल पुराने ममी पर किए गए शोध से पता चला है कि लोगों की मौत कैंसर जैसे बीमारी से होती थी.
जो लोग मानते हैं कि कैंसर हाल-फिलहाल की बीमारी है, उन्हें यह कहने से पहले अब कई बार सोचना होगा.
डॉक्टरों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि कैंसर जैसी बीमारी से लोग पहले भी मरते रहे हैं. डॉक्टरों के एक दल ने करीब 2900 साल पुरानी एक ममी पर शोध करने के बाद पाया है कि मिस्र के एक आदमी की मौत कैंसर जैसी बीमारी से हुई थी.
डॉक्टरों का यह भी कहना है कि जिस वक्त उस व्यक्ति की मौत हुई थी, उस वक्त वह मधुमेह से पीड़ित था और उसकी उम्र बीस वर्ष के आस-पास रही होगी.

स्पष्ट निशान

"पुराने समय में यह बीमारी बहुत ही घातक थी, लेकिन आजकल इसका इलाज संभव है"
ममी का अध्ययन कर रहे चिकित्सा दल के प्रमुख डॉक्टर मिशलाव काव्का
प्राचीन काल के उस ममी के शरीर पर एक स्पष्ट निशान भी है जिससे पता चलता है कि मौत से पहले उनकी क्या हालत हुई होगी और उनकी मौत कितनी घातक रही होगी.
यह ममी इस वक्त क्रोशिया में जागरेब विश्वविद्यालय के संग्रहालय में रखी है.
ममी का अध्ययन कर रहे चिकित्सक दल के प्रमुख और जागरेब विश्वविद्यालय के डॉक्टर मिशलाव काफ्का का कहना है, “ऐसा लगता है कि उस बीमारी ने उस व्यक्ति की हड्डी और अन्य दूसरे नाजुक (टीशू) को बुरी तरह प्रभावित कर दिया था.”
डॉक्टर काफ्का ने लाइव साइंस पत्रिका को बताया, “हम उनके उपर किए गए शोध के आधार पर कह सकते हैं कि यह एक प्रकार का कैंसर है.”

पुरूषों में थी बीमारी

हालांकि डॉक्टर अभी भी बीमारी की वजह को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं, लेकिन उनका मानना है कि यह बहुत ही असामान्य बीमारी है. डॉक्टरों के अनुसार यह बीमारी पांच लाख साठ हजार लोगों में से किसी एक व्यक्ति, खासकर किसी पुरूष में पाई जाती है.
डॉक्टर काफ्का का यह भी कहना है, “पुराने समय में यह बीमारी बहुत ही घातक थी, लेकिन आजकल इसका इलाज संभव है.”
पहले माना जाता था कि ममी के रूप में रखा गया यह ताबूत कारसेत नामक महिला का है जिसे लगभग 2300 वर्ष पहले वहां लाया गया था.
अलग-अलग समय में तीन ममी पर किए गए शोध से पता चला है कि पहले भी कैंसर की बीमारी होती थी
लेकिन काफ्का और उनके सहयोगी डॉक्टरों ने ममी का अध्ययन करने के लिए एक्स रे, सीटी स्कैन, एमआरआई और अन्य विकसित तकनीक की मदद से यह निष्कर्ष निकाला कि वह पुरूष है.
ममी का स्कैन करने के बाद पता चला कि इसकी खोपड़ी में बहुत बड़ा छेद हो गया है और एक आँख के सॉकेट को काफी क्षति पहुंची है.

प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर काव्का

"जब वह मरा होगा तो वह प्यासा रहा होगा, भूखा भी होगा और हो सकता है कि उसे पेशाब भी लगा हो"
शोधकर्ताओं का कहना है कि हो सकता है कि शव को ममी बनाने के दौरान लेप करते समय शरीर को नुकसान पहुंचा हो.

मधुमेह से पीड़ित

उसके अलावा वह मधुमेह से भी परेशान रहा होगा. स्कैन रिपोर्ट से पता चलता है कि ममी के पीयूष ग्रंथि का भाग छिछला हो गया है. इसका मतलब यह भी है कि पीयूष ग्रंथि को भी बीमारी से नुकसान पहुंचा था.
प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर काफ्का के अनुसार, “जब वह मरा होगा तो वह प्यासा रहा होगा, भूखा भी होगा और हो सकता है कि उसे पेशाब भी लगी हो.”
वैज्ञानिकों के बीच इस पर लंबे समय से बहस होती रही है कि प्राचीन काल में कैंसर की बीमारी थी या नहीं. पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि जिन्दगी के अंतिम दिनों में प्रदूषण से यह बीमारी होती थी.

पुरानी बीमारी

वैसे कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि कैंसर की बीमारी तो होती ही थी लेकिन ये पता लगाना बहुत मुश्किल था कि यह बीमारी कैंसर ही है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह प्राचीन मिस्र का तीसरा व्यक्ति है जिसमें कैंसर से उनके मरने का प्रमाण मिला है. डॉक्टर काफ्का का कहना है कि उस वक्त भी यह बीमारी आज की तरह उतनी ही मारक रही होगी.

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GHAZIABAD, Uttar Pradesh, India
कला के उत्थान के लिए यह ब्लॉग समकालीन गतिविधियों के साथ,आज के दौर में जब समय की कमी को, इंटर नेट पर्याप्त तरीके से भाग्दौर से बचा देता है, यही सोच करके इस ब्लॉग पर काफी जानकारियाँ डाली जानी है जिससे कला विद्यार्थियों के साथ साथ कला प्रेमी और प्रशंसक इसका रसास्वादन कर सकें . - डॉ.लाल रत्नाकर Dr.Lal Ratnakar, Artist, Associate Professor /Head/ Department of Drg.& Ptg. MMH College Ghaziabad-201001 (CCS University Meerut) आज की भाग दौर की जिंदगी में कला कों जितने समय की आवश्यकता है संभवतः छात्र छात्राएं नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षा के साथ प्रयोग और विश्वविद्यालयों की निति भी इनके प्रयोगधर्मी बने रहने में बाधक होने में काफी महत्त्व निभा रहा है . अतः कला शिक्षा और उसके उन्नयन में इसका रोल कितना है इसका मूल्याङ्कन होने में गुरुजनों की सहभागिता भी कम महत्त्व नहीं रखती.